दीयों का त्योहार या दीपावली पुरे देश में धूम धाम से मनाया जाता है। दीपावली इस बार 24 अक्टूबर (सोमवार )को बड़े हर्षोउल्लाष के साथ मनाया जायेगा।
दीपावली सबसे पुराना त्योहार है। आध्यात्मिक रूप से दीपावली ‘अन्धकार पर प्रकाश की विजय’ को दर्शाता है। ये पर्व हर जाती और धर्म के लोग अपने हिसाब से मनाते हैं जैसे जैन धर्म के लोग इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में तथा सिख समुदाय इसे बन्दी छोड़ दिवस के रूप में मनाते हैं।
दीपावली यही चरितार्थ करती है – असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय।
दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है।दीपावली की तैयारी लोग कुछ दिन पहले से शुरू कर देते है। जैसे घर,दुकान की साफ़ सफाई शुरू कर देते हैं। सब की यही कोशिस रहती है की घर ही नहीं आस पास भी कहीं गंदगी न हो। हिन्दू काव्य रामायण के अनुसार जब भगवान श्री राम 14 वर्ष का वनवास पूरा करके अयोध्या वापस आये थे तब पुरी प्रजा ने उनके आने की खुशी में पुरे शहर में घी के दिए जलाये थे। वो दिन कार्तिक महीने की अमावस्या थी पूरा शहर दिए की रोशनी से जगमगा गया था,उसी दिन से आजतक हमारे देश में दीपावली मनाया जाता है।
दीप जलाने की प्रथा के पीछे अलग-अलग कारण या कहानियाँ हैं :
- इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए जिस वजह से दीपावली पे माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है।
- जैन समाज,महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में मनाते है।
- सिक्खों के लिए भी दीपावली महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन ही अमृतसर में 1577 में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था।
दीपावली सिर्फ हिंदुस्तान ही नहीं पुरे दुनिया में मनाया जाता है। अंधकार पर प्रकाश की विजय का यह पर्व समाज में उल्लास, भाई-चारे व प्रेम का संदेश फैलाता है। यह पर्व सामूहिक व व्यक्तिगत दोनों तरह से मनाए जाने वाला ऐसा विशिष्ट पर्व है जो धार्मिक, सांस्कृतिक व सामाजिक विशिष्टता रखता है। हर प्रांत या क्षेत्र में दीपावली मनाने के कारण एवं तरीके अलग हैं पर सभी जगह कई पीढ़ियों से यह त्योहार चला आ रहा है।
लोगों में दीपावली की बहुत उमंग होती है। लोग अपने घरों का कोना-कोना साफ़ करते हैं, नये कपड़े पहनते हैं। मिठाइयों के उपहार एक दूसरे को बाँटते हैं, एक दूसरे से मिलते हैं। घर-घर में सुन्दर रंगोली बनायी जाती है, दिये जलाए जाते हैं और आतिशबाजी की जाती है। बड़े छोटे सभी इस त्योहार में भाग लेते हैं।