पीलिया (Jaundice) एक चिकित्सीय स्थिति है जिसमें त्वचा का पीलापन या आंखों का सफेद भाग, वर्णक बिलीरुबिन की अधिकता से उत्पन्न होता है और आमतौर पर पित्त नली में रुकावट, यकृत रोग या लाल रक्त कोशिकाओं के अत्यधिक टूटने के कारण होता है।
“पीलिया” शब्द फ्रांसीसी शब्द “जॉनिस” से आया है, जिसका अर्थ है “पीला”। पीलिया कई अलग-अलग कारकों के कारण हो सकता है, जिनमें शामिल हैं: सिरोसिस, हेपेटाइटिस, कंजेस्टिव दिल की विफलता, या कोई अन्य यकृत रोग। पीलिया कुछ दवाओं और एसिटामिनोफेन जैसी दवाओं की अधिक मात्रा के कारण भी हो सकता है।
पीलिया (Jaundice) की विशेषता त्वचा में पीलापन और आंखों का सफेद होना है। सबसे आम लक्षण खुजली (प्रुरिटस) है। अन्य लक्षणों में बुखार, मांसपेशियों में दर्द और दर्द, मतली और उल्टी, पेट में दर्द या परेशानी (विशेष रूप से ऊपरी दाएं चतुर्भुज में), वजन घटाने या लाभ (आमतौर पर हानि), मामूली कटौती और खरोंच से आसान चोट लगने या रक्तस्राव, मिट्टी के रंग का मल शामिल है (पित्त में कमी के कारण)
पीलिया एक ऐसी स्थिति है जो कई अलग-अलग कारकों के कारण हो सकती है। यह त्वचा के पीलेपन और आंखों के गोरेपन की विशेषता है। लेकिन इसके कुछ मुख्य कारण है जो कुछ इस प्रकार है
पीलिया (Jaundice) के मुख्य कारण :-
1. कब्ज ।
2. किसी कारण पित्त नली के बंद हो जाने पर पित्त रस छोटी आंत में न जाकर रक्त के साथ मिलने लगता है।
3. पित्ताशय की पथरी तथा टियूमर (Tummour)।
4. मलेरिया, टायफायड, न्यूमोनिया, हृदय रोग आदि।
5. अधिक औषधि प्रयोग।
6. पाचन प्रणाली की निष्क्रियता।
7. अयुक्ताहार-विहार।
तुरंत आराम के लिए करें ये उपचार :-
- मूली के पत्तों का रस निकालकर आधा गिलास दिन में दो बार 2-3 दिन पिलाएं।
- कुछ दिन करेले को पानी में पीसकर दो-दो चम्मच दिन में दो बार पिलाएं।
- कुछ दिन कच्ची मूली प्रातः उठते ही खाएं।
- कच्चे पपीते के रस की 10 बूंदें पताशे में डालकर दो सप्ताह खाएं।
- दिन में कई बार आघा नींबू रस जल में मिलाकर पिलाएं।
- हरे रंग की बोतल का सूर्य तप्त पानी थोड़ा-थोड़ा करके दिन में कई बार पिलाते रहें।
- मूली और संतरे खूब खाएं।
- गिलोय का काढ़ा बनाकर शहद डालकर पीएं।
पीलिया में आहार :-
यथाशक्ति जल के साथ उपवास या रसाहार पर कुछ दिन रहने के बाद क्रमशः रस की मात्रा बढ़ाते हुए फलाहार पर आ जायें। हालत सुधर जाने पर धीरे-धीरे एक समय चोकर समेत आटे की रोटी और सब्जी दें और दूसरे समय फल और सब्जी पूर्ण स्वस्थ होने तक दें।
क्षारीय भोजन अधिक मात्रा में दें, सलाद खूब दें। सेब, बेलपत्र, संतरा, अन्ननास, आलू बुखारा, गन्ना, नारियल चुकन्दर, कुकरौंध, इमली आदि के रस तथा अमरूद, पपीता, जामुन, आंवला, फालसा आदि फल तथा परवल, पालक, गाजर, नेनुआ, तरोई, शलजम, खीरा, लौकी, बथुआ, चौलाई, कुल्फा, चने का साग, मेथी का साग, टमाटर, लहसुन, मूली, हरा धनिया, पुदीना, पत्तागोभी, आदि सब्जी बहुत उपयोगी है। अच्छा सुधार होने पर पट्टा तथा भिगोकर किशमिश, मुनक्का व अंजीर दें।
पीलिया में वर्जित :-
1. चिकनाई वाला गरिष्ठ तथा अमलकारक भोजन।
2. निर्जीव आहार, अमानुषिक, श्वेत विष तथा मादक द्रव्य।
3. काष्ठ (गिरीदार) मेवे।
4. केला।
5. लिवर एक्सट्रेक्ट या कोई औषधि।
प्राकृतिक उपचार के संकेत :-
1. गिलोय का काढ़ा बनाकर शहद डालकर पीएं। | 2. एनिमा। |
3. सशक्त रोगी शंख प्रक्षालन करें। | 4. यकृत पर गर्म ठंडा सेंक देकर गरम-ठंडी पट्टी। |
5. गर्म-ठंडा हिप बाथ, पेडू पर मिट्टी पट्टी या गीली गर्म पट्टी। | 6. सूर्य स्नान या भाप स्नान के बाद स्नान या स्पंज स्नान। |
7. गीली चादर लपेट, ठंडा कटिस्नान आदि। | 8. नाड़ी शोधन प्राणायाम तथा उदर सम्बन्धी सभी आसन विशेषकर पश्चिमोत्तासन करें। |
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