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छठ पर्व (chhat puja) कैसे मनाया जाता है ?

हिन्दू मान्यता के अनुसार ये छठ पर्व (chhat puja) कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाता है। छठ पर्व की शुरुवात नहाय खाय से शुरू होती है और उगते सूरज की पूजा के साथ खत्म होती है।

छठ पर्व (chhat puja) बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी त्योहारों में से एक है। छठ एक त्योहार नहीं  एक महापर्व है। जिसकी धमक आजकल अब पुरे देश ही नहीं विदेशो में भी पहुँच चुकी है। ये एक ऐसा पर्व है जहाँ सारी  दुनिया उगते सूरज की पूजा करती है वहीं बिहारवासी डूबते सूरज की भी पूजा करते हैं।

छठ पर्व (chhat puja) कैसे बनाया जाता है ?
छठ पर्व (chhat puja)

छठ पर्व चार दिन तक चलता है।:-

  • पहला दिन नहाय खाय
  • दूसरा दिन खरना
  • तीसरा दिन शाम  की अर्ध्य
  • अंतिम दिन सुबह की अर्ध्य

नहाय खाय :-

इस दिन बिना नहाये कुछ भी नहीं खाया जाता है। इस दिन को कद्दू भात भी कहते हैं। इस दिन हर घर में कद्दू की सब्जी बनती है। और घर की औरतें पूजा में चढ़ने वाले पकवान के लिए गेहूं और चावल को अच्छे से पानी में धो के अपने छत या फिर आँगन पे धुप में सूखने देते हैं और एक डंडा लेके बैठी रहती हैं ताकि कोई पक्षी दाना को न खा ले और सब औरतों लोक गीत गाने में मगन रहतीं हैं।

छठ पर्व (chhat puja)

खरना :-

इस दिन छठवर्ती मिट्टी का चूल्हा  बनाती हैं और शाम में उसी चूल्हे पे खीर और रोटी बनती है जो प्रसाद के तौर पे चढ़ाया जाता है। शाम में पूजा होने के बाद घर के सारे बूढ़े बच्चे दूध का अर्ध्य देते हैं फिर प्रसाद को ग्रहण करते हैं।

शाम  की अर्ध्य :-

इस दिन छठवर्ती पकवान बनती हैं। फिर हाँथ से बने सुप को सजाती हैं। सुप में प्रसाद के नाम पे पकवान ,सेव ,नारियल ,गन्ना और पंचमेवा चढ़ाया जाता है। फिर सारे लोग नदी या तालाब के किनारे जमा होते हैं और डूबते सूर्य की पूजा स्नान के बाद करते हैं और अर्ध्य देकर घर आ जाते हैं।

छठ पर्व (chhat puja)

सुबह की अर्ध्य :-

सूर्योदय से पहले सब फिर से नदी के किनारे जमा होते हैं। नदी में स्नान करने के बाद के सूर्ययोदय होने के बाद अर्ध्य देते हैं। उसके बाद छठवर्ती सबको हल्दी का टिका करती हैं और प्रसाद देती हैं।

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छठ पूजा में क्या गलती नहीं करनी चहिये :-

1. मांस -मदिरा का सेवन नहीं करना चहिये।

2. जहाँ तहाँ थूक नहीं फेखना चहिये।

3. कहीं भी गंदगी नहीं फैलानी चहिये।

4. किसी भी छठवर्ती को गलती से भी पैरों से नहीं छूना चहिये।

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