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डेंगू बुखार (Dengue fever) के 7 लक्षण, बचाव और प्राकृतिक उपचार!

डेंगू बुखार (dengue fever)

डेंगू बुखार (Dengue fever), जिसे हड्डी तोड़ बुखार भी कहा जाता है, एक वायरल संक्रमण है जो मच्छरों द्वारा फैलता है। लक्षण अन्य सामान्य संक्रमणों के समान हैं और इसमें बुखार, दाने, और गंभीर मांसपेशियों और जोड़ों का दर्द शामिल है।

यह दुनिया में सबसे व्यापक और आम मच्छर जनित बीमारियों में से एक है। यह वायरस एडीज मच्छरों से फैलता है, जो दुनिया भर के 100 से अधिक देशों में मौजूद हैं। डेंगू रक्तस्रावी बुखार (डीएचएफ) भी हो सकता है यदि कोई द्वितीयक जीवाणु संक्रमण होता है या यदि बीमार होने पर पर्याप्त तरल पदार्थ नहीं बदला जाता है। डीएचएफ के परिणामस्वरूप अक्सर प्रारंभिक उपचार के बिना मृत्यु हो जाती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि वैश्विक स्तर पर हर साल 50 मिलियन लोग डेंगू वायरस से संक्रमित होते हैं और डीएचएफ/वर्ष के 500,000 मामले सामने आते हैं।

डेंगू बुखार (Dengue fever) के लक्षण:-

डेंगू बुखार (Dengue fever) के 7 लक्षण
डेंगू बुखार के 7 लक्षण

डेंगू बुखार के लक्षण हल्के या गंभीर हो सकते हैं जैसे

  • बुखार
  • सिरदर्द
  • मतली
  • उल्टी
  • मांसपेशियों में दर्द
  • दाने
  • नाक से खून आना

डेंगू बुखार (Dengue fever) से बचाव के उपाय :-

(1) मच्छरों के काटने से बचने के लिए अपने बाजू और टांगें पूरी तरह ढक कर रखें।

(2) मच्छरों के पैदा होने तथा पनपने के स्थानों (पानी की टंकियों, ड्रमों, पीपों, घड़ों, कूलरों, नालियों, खाली टिन के डिब्बों, टूटे-फूटे बर्तनों आदि) को प्रतिदिन साफ करें या यथासंभव उन्हें निर्जल (शुष्क) रखने की कोशिश करें।

(3) घरों के आसपास गंदा पानी इकट्ठा न होने दें।

(4) जहां पर तलैया या गड्ढे में पानी भरा रहता हो, वहां उस पानी पर मिट्टी का तेल डाल दें

बचाव के लिये घरेलू उपचार
बचाव के लिये घरेलू उपचार

डेंगू बुखार (Dengue fever) से बचाव के लिये प्राकृतिक उपचार:-

(1) पूर्ण विश्राम करें-शारीरिक व मानसिक ।

 (2) यदि शरीर का तापमान 101-102 से ऊपर हो जाता है, तो ठंडे पानी की गीली पट्टियां माथे, पेडू और रीढ़ पर रखते रहें जब तक कि तापमान 101-102 से कम न हो जाए।

(3)जब भी सम्भव हो, खाली पेट, लेट कर या बैठ कर लम्बे, गहरे सांस लें।

(4) कम वस्त्र पहनकर प्रातः हल्का सा सूर्य स्नान भी लें।

(5) प्रतिदिन स्पंज बाथ (तौलिया स्नान) लें।

 (6) पेट को साफ रखें, विशेष कर एनिमा लें ।

तरल पदार्थ (पेय) ले:-

तरल पदार्थ (पेय) ले
तरल पदार्थ (पेय) ले

(1) ढेरों तरल पेय या ताजा सादा जल पीते रहें

(2) तुलसी के दस पत्तों, काली मिर्च के 5 दानों और थोड़े से अदरक की चाय (काढ़ा) दिन में 2-3 बार जरूर लीजिए।

(3) एक-चौथाई नीबू रस को गुनगुने पानी के कप में डाल कर दिन में  3-4बार लीजिए।

 (4) एक प्याज के रस में 2-3 काली मिर्च के दानों के पाउडर को मिलाकर दिन में दो बार लीजिए

 (5) फल-रस लीजिए- विशेषकर नीबूं ग्रेपफ्रूट, संतरा, माल्टा, मौसम्बी, नाशपाती

(6)  आंवले का काढ़ा लीजिए

(7) सेब की चाय या किशमिश (मुनक्का) जल लीजिए ।

(8)  सलाद पत्ती का सूप या जूस लें।

(9) पालक या बन्दगोभी का सूप या जूस लीजिए।

चेतावनी (क्या नहीं करे) :-

(1) एंटीबायोटिक मत लो, क्योंकि यह एक बैक्टीरियल रोग नहीं है।

(2) किसी प्रकार की दवाई, सीरप या कैपसूल मत लो और जानवरों के मवाद से बने टीके या इन्जेक्शन आदि भी न लगवाएं। वरन् रोग को दबाने से कई प्रकार के भयंकर परिणाम निकल सकते हैं।

(3) कोई ठोस आहार न लेकर, ज्वर उतरने तक तरल पदार्थ (पेय) ही लेते रहें

नोट :-

(1) सारे के सारे तरल पेय लाभदायक और उपयोगी हैं, परन्तु आप आवश्यकतानुसार जो चीजें सुलभ हों, उनको इनमें से चुनकर प्रयोग करें।

(2) दो तरल पेयों के बीच में 2 घंटों का अन्तर रहे।

(3) जब रोग के लक्षण 2-5 दिन में दूर र हो जाएं, तो भूलकर भी ठोस आहार न लें, परन्तु तरल पेय और 2-3 दिन जारी रखकर, बाद में कुछ दिन सम्पूर्ण फल खाएं, विशेषकर-संतरा या ग्रेपफ्रूट या नाशपाती या माल्टा या मौसम्बी। परन्तु केला कदापि नहीं।

(4) एक समय में एक ही प्रकार का फल खाएं।

(5) कुछ दिन केवल फल खाने के बाद ही धीरे-धीरे अल्प मात्रा में ठोस आहार अपने पाचन व निष्कासन की क्षमता के •अनुसार लें। सन्तुलित आहार में 80 प्रतिशत क्षारीय और 20 प्रतिशत अम्लीय आहार का अनुपात होना चाहिए ।

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