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ध्यान योग (meditation) से तनाव मुक्त होने के 10 तरीके और उसके लाभ (10 ways to get rid of stress through meditation and its benefits in Hindi)

ध्यान योग (meditation) से तनाव मुक्त होने के 10 तरीके और उसके लाभ (10 ways to get rid of stress through meditation and its benefits in Hindi)

ध्यान योग (meditation) कई स्वास्थ्य लाभों के साथ ध्यान का एक रूप है। एक शांतिपूर्ण दिमाग विकसित करने के लिए ध्यान और योग दो सबसे लोकप्रिय और मूल्यवान अभ्यास हैं। योग और ध्यान के साथ आप अपने जीवन को बदलने और अधिक शांति, संतोष और खुशी का आनंद लेने के लिए इन प्रथाओं का उपयोग करने का तरीका जानेंगे।

ध्यान योग (meditation)
ध्यान योग (meditation)

तनावपूर्ण युग :-

आधुनिक युग को आप चाहे “वैज्ञानिक युग’ कहें, चाहे “यांत्रिक युग” या “औद्योगिक युग” या “अणुशक्ति युग” इत्यादि जो भी कहें पर इसे तनावपूर्ण युग कहना कहीं अधिक न्यायसंगत होगा। चाहे मानव ने उपरोक्त क्षेत्रों में असीमित उन्नति कर ली है और बहुत ही समृद्ध व सर्वसम्पन्न हो गया है तथा क्षय, चेचक, प्लेग, आदि कई घातक रोगों पर विजय भी प्राप्त कर ली है और उसके जीवन को सुखी बनाने के लिए असंख्य साधन हैं, अनेक सुविधाएं हैं, परन्तु फिर भी मानव पहले से ज्यादा दुःखी व अशान्त है ।

शान्ति और आराम की खोज में नींद की गोलियां तथा कई प्रकार की औषधियां लेता है परन्तु फिर भी हर प्रकार तनाव तथा असाध्य रोगों से ग्रस्त है ।यह तनाव पूर्ण वातावरण तो आधुनिक सभ्यता का अभिशाप है इससे छुटकारा पाने के लिये अब विश्व के सभी देश योग, विशेषकर ध्यान योग का सहारा ढूंढ रहे हैं। वैज्ञानिकों ने भी इसके महत्व को स्वीकार किया है।

योग विज्ञान में ध्यान का स्थान :-

ध्यान योग (meditation) मुद्रा
ध्यान योग (meditation) मुद्रा

महर्षि पतंजलि ने योग को संकलित करके अष्टांग योग का प्रतिपादन किया है। ये आठ अंग हैं :- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। ध्यान योग विज्ञान की सातवीं सीढ़ी है। यह अन्तिम सीढी समाधि से पहले आती है और इसका बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। ध्यान योग (meditation) की साधना में पहली छः सीढ़ियों का अभ्यास साधक की सहायता और गतिशीलता प्रदान करता  है। सद्यपि आजकल लोग इसका स्वतंत्र रूप से अभ्यास करने लग गए हैं परन्तु उस अवस्था में वे पूर्ण सफल नहीं हो पाते। पहली सीढ़ियों को, बिना पार किये छलांग मारकर ऊपर पहुंचने से गिरने का डर रहता है।

यम और नियम :- ये चित्तशुद्धि में सहायक होते हैं। इनके पालन करने से दुःख और दौर्मनस्य दूर होते हैं तथा वैयक्तिक और सामाजिक शांति मिलती है। आसन और प्राणायाम इनके द्वारा अंग में जयत्व और श्वास-प्रश्वास ठीक किये जाते हैं।

प्राणायाम :- इससे प्राणिक प्रवाह में समता आती है, जिससे मन शांत होता है, मन शांत होने से इन्द्रियां वश में होती हैं। प्रत्याहार : – इन्द्रियां वश में होने से प्रत्याहार की स्थिति अर्थात बहिर्मुख वृत्ति को अन्तर्मुख करने की स्थिति आती है।

धारणा :- यह प्रत्याहार के बाद की स्थिति आती है जिसमें मन को एक चीज या प्रतीक पर एकाग्र करते हैं।

ध्यान :- धारणा की स्थिति सिद्ध होने पर मन के एक चीज में लग जाने की लय हो जाने की मिल जाने की, समा जाने की स्थिति अपने आप आ जाती है।

चेतना शक्ति को इधर-उधर :- जाने से रोककर एक केन्द्र पर स्थिर (या एकाग्र) करने की प्रक्रिया को ध्यान कहते हैं। चित्त की निर्विकार अवस्था ही ध्यान है। अर्थात विचार से निर्विचार में जाना ध्यान है।

ध्यान की विधियां अनेक :- व्यक्ति के स्वभाव, प्रकृति, भोजन, समय, विचारधारा, दृष्टिकोण, उद्देश्य व जीवन प्रणाली, संस्कार, क्षमता, रुचि तथा सुगमता के अनुसार ध्यान की अनेक प्रणालियां प्रचलित हैं :-

(1) श्वास की गति पर ध्यान (2) मंत्रजप से ध्यान (3) अपने इष्टदेव का ध्यान, (4) शांभवी मुद्रा में ध्यान (5) प्रेक्षाध्यान (जैन मत): (6) विपश्यना (बौद्धमत): )7) षण्मुखी मुद्रा में ध्यान ( 8 ) त्राटक तथा विचार दर्शन (9) चिदाकाश ध्यान; (10) योग निद्रा (11) चक्रों पर ध्यान (12) भावातीत ध्यान (Transcendental Meditation); (13) नादयोग आदि ।

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ध्यान योग (meditation) की सरलतम विधि :-

ध्यान योग (meditation) की सरलतम विधि
ध्यान योग (meditation) की सरलतम विधि

(1) किसी भी आसन में शरीर सीधा व ढीला रखकर सुखपूर्वक बैठ जाएं और मूलबंध लगाएं। (गुदा को अन्दर की ओर खींचे) । आंखें बन्द कर लें। रोगी व कमजोर व्यक्ति शवासन में लेट सकते हैं।

(2) आंखें बंद रखते हुए, पांव को अंगुलियों से लेकर सिर तक सारे अंगों का बारी-बारी से तनाव मुक्त करते हुए ध्यान करते जाएं- (इस चेतना को 3-4 बार घुमाएं)।

(3) थोड़ी देर हल्की आंखें बन्द रखते हुए नासाग्र दृष्टि पर ध्यान लगाएं।

(4) इसके बाद आंखें बन्द रखते हुए श्वास की गति (सांस के आने जाने) पर ध्यान लगाएं। कोई भी अच्छे-बुरे विचार या दृश्य सामने आएं उनको कोई महत्व न दें। विचलित न होवें । केवल श्वास-प्रश्वास पर ध्यान रखते हुए धीरे-धीरे लंबा सांस लें और छोड़ें। ऐसा 1-10 बार करें।

(5) अन्त में लम्बी सांसों के साथ ‘ओं का उच्चारण मन ही मन करें। जब लम्बा सांस लें तब मन में ओं कहें। सांस रोकें नहीं। (इसमें कुम्भक नहीं, केवल पूरक और रेचक इसके कुछ देर बाद लम्बी सांसें बंद करके साधारण सांसों के साथ ‘ओं’ का उच्चारण यथाशक्ति करते रहें। जब ‘ओं कहते या गिनती करते भूल हो जाएं या मन दूर भाग जाए, तब याद आने पर फिर चालू कर दें।

शुरू में आपके ध्यान में कई समस्याओं, भय आदि से विघ्न पड़ेगा। उनसे आपका ध्यान टूटेगा। टूटने दीजिए, फिर आप उसे जोडिए । ध्यान टूटने पर, प्यार से बार-बार खींचकर वापस लाइए। इस अभ्यास की अवधि को दिन-प्रतिदिन धीरे-धीरे बढ़ाते जाइए। धीरे-धीरे टूटना कम और जुड़ना अधिक होता जाएगा। तब ध्यान योग से लाभ ही लाभ मिलते जाएंगे।

ध्यान योग (meditation) से लाभ :-

कई शारीरिक-मानसिक रोग (उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, अनिद्रा, स्नायु रोग, विक्षिप्तता दूर होते हैं। मन वश में होना, आनन्दमय जीवन, मानसिक शांति और संतुलन, एकाग्रता की प्राप्ति, अर्न्तज्ञान की प्राप्ति सिद्धियों की प्राप्ति बहुमुखी प्रतिभा का प्रस्फुटन, बौद्धिक विकास, मानसिक तनाव व चिन्ताओं से मुक्ति, मस्तिष्क में अल्फा-बीटा तरंगों का पैदा होना आदि अनेक लाभ है।

आवश्यक सूचनाएं :

(1) विधि :- ध्यान की कई विधियां हैं, परन्तु ध्यान की उपरोक्त विधि ही सरलतम है। ध्यान की कोई एक विधि अपनाएं और दीर्घकाल तक अभ्यास करें, बार-बार नयी-नयी विधियों के प्रयोग से सफलता नहीं मिलेगी।

(2) व्यक्ति :- उपरोक्त विधि रोचक, व्यवहारिक तथा अधिक वैज्ञानिक है और आधुनिक युग के लिए बड़ी ही उपर्युक्त तथा अनुकूल है। इसे हर एक व्यक्ति सरलता से कर सकता है।

(3) भोजन :- मन को शान्त तथा स्थिर रखने के लिए भोजन सदा सात्विक, हल्का और सुपाच्य होना चाहिए।

(4) स्थान :- ध्यान के लिए स्थान समतल, पवित्र एकान्त, शान्त और हवादार हो।

(5) समय :- दिन के किसी समय ध्यान कर सकते हैं परन्तु प्रातः सूर्योदय से पहले और रात को सोने से पहले अधिक लाभप्रद है।

(6) आसन :- एक ही आसन में सदा अभ्यास करें। ध्यान के बीच में बार-बार आसन न बदलें।

(7) संकल्प :- जितनी देर ध्यान योग करना हो उसका दृढ़ संकल्प करके उतनी देर जरूर ध्यान लगाएं। यदि आवश्यक हो, निश्चिन्त होने के लिए घड़ी को एलार्म लगाकर दूर रख दें।

(8) प्राणायाम :- ध्यान प्रारम्भ करने से पहले कुछ क्षण कपालभाति व नाड़ी शोधन प्राणायाम कर लेने चाहिए क्योंकि इनसे मन की चंचलता दूर होती है और यह एकाग्रता की प्राप्ति में सहायक होता है।

(9) अभ्यास :- जो रोगी हों, कमजोर हों, या देर तक न कर सकते हों, वे शुरू में इसका अभ्यास थोड़ी देर ही करें, फिर धीरे-धीरे बढ़ाते जाएं। जल्दबाजी कदापि न करें इसका अभ्यास नियमित होना चाहिए वरना प्रगति रुक सकती है।

(10) दिशा :- यदि उत्तर या पूर्व की ओर मुंह करके इसका अभ्यास किया जाए तो अधिक उपयोगी सिद्ध होता है।

(11) विचार :- प्रति क्षण मन में निरर्थक विचारों की भीड़ लगी रहती है। उनको दबाने में जबरदस्ती न करें। यदि हम अपनी चेतना को विचारों पर से हटाकर श्वास की गति पर ले जाएं तो विचार धीरे-धीरे अपने आप शांत और कम होने लगते हैं । अन्त में मन को विचारशून्य (निर्विचार) करने पर ध्यान सहज हो जाता है।

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