दही (Curd) का सेवन दूध से कहीं ज्यादा लाभप्रद होता है। वैज्ञानिकों ने भी पूरी तरह से यह सिद्ध कर दिया है दूध की चिकनाई कोलेस्ट्रोल बढ़ाती है, इसीलिए हृदय रोगियों के लिए दही (Curd) का नियमित सेवन जहां एक और अत्यन्त लाभकारी माना जाता है वही दूसरी ओर दूध के सेवन से कोलेस्ट्रोल ह्रदय की ओर जाने वाली कोशिकाओं को अवरुद्ध करके हृदय रोगियों के लिए अनेक उपद्रव खड़ा कर देता है।
अमेरिका, कनाडा और डेनमार्क जैसे देशों में दही (Curd) पर अनेक प्रयोग किए गए और परिणामों में यह पाया गया कि दही हृदय रोगियों के रामबाण के समान है। संग्रहणी जैसा असाध्य रोग भी दही के प्रयोग से ठीक किया जा सकता है। हमारे देश में अनादिकाल से दही का प्रयोग हवन, यज्ञ, विवाह, मुंडन, जनेऊ आदि मांगलिक अवसरों पर भी किया जाता है।
दही (Curd) का निर्माण दूध से ही होता है जिसमें लैक्टिक अम्लीयता कृत्रिमरूप से विकसित की गई होती है। दरअसल दूध में पानी के बाद मुख्यतः ‘केसीन’ नामक प्रोटीन होता है। परन्तु जब थोड़ा सा यही दूध में जमावन के रूप में मिल जाता है तो यही लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया दूध में मौजूद केसीन नामक प्रोटीन को लैक्टिक ऐसिड के रूप में परिवर्तन कर देता है। इसी परिवर्तन के कारण दही में अतिरिक्त गुणों का विकास हो जाता है। जो इसे दूध की अपेक्षा अधिक गुणकारी बना देता है।
विश्व के लगभग हर कोने में दही (Curd) का सेवन अनेक रूपों में किया जाता है अपने देश में लस्सी, रायता, कड़ी, दही बड़े एवं घाट के रूप में दही का प्रयोग किया जाता है। रूस के जार्जिया एवं बुल्गारिया आदि के लोग आज भी दही के नियमित सेवन के कारणों से एक सौ वर्ष से ज्यादा उम्र को पार कर जाते है।
कोलेस्ट्रोल हृदय रोग को बढ़ाता है :-
दूध की चिकनाई कोलेस्ट्रोल को बढ़ाती है जिसके कारण अधिक दूध पीने वालों को हृदय रोग होने की काफी संभावनाएं बनी रहती हैं। कोलेस्ट्रोल एक चर्बीयुक्त पदार्थ है। इसे रक्त की चर्बी भी कहा जाता है। यह श्वेत रंग का छोटे-छोटे कणों जैसा अल्कोहलिक पदार्थ होता है जो मनुष्य के उतकाय में पाया जाता है और अधिक बढ़ जाने पर वह रक्त के बहने में रूकावट डालता है। इसकी मात्रा बढ़ जाने से यह हृदय की ओर जाने वाली रक्त शिराओं को अवरुद्ध कर देता है, फलत: हृदय रोग हो जाता है।
दही (Curd) कोलेस्ट्रोल घटाता है :-
दही (Curd) के संबंध में शोध करने वाले अमेरिकी वैज्ञानिक डा. मान ने पाया कि दही का बैक्टीरिया एक ऐसे पदार्थ की रचना करता है जो लिवर (यकृत या जिगर) में कोलेस्ट्रोल का बनना रोक देता है फलतः दही के सेवन से शरीर में बनने वाली कोलेस्ट्रोल की रचना में गिरावट आ जाती है। यह ठीक है कि हृदय रोगों में तथा रक्तचाप बढ़ जाने पर दही के सेवन द्वारा रजा में मौजूद कोलेस्ट्रोल की मात्रा कम हो जाती है, परन्तु इसके लिए अभी शोध जारी है कि कितना दही खाने से कितना कोलेस्ट्रोल कम होगा।
दही (Curd) का परहेज :-
आयुर्वेद ग्रन्थ चरक संहिता के अनुसार दही (Curd) के सेवन के बारे में कुछ सावधानियां भी कही गई हैं। उनका पालन न करने से अमृत तुल्य दही का प्रभाव कम हो जाता है और अन्यान्य उपद्रवों को जन्म देने वाला भी होता है। फाइलेरिया के रोगियों को दही कदापि नहीं खाना चाहिए।
● दही (Curd) को तांबे, पीतल, कांरो और एल्युमीनियम के बर्तनों में नहीं रखना चाहिए क्योंकि इन धातुओं के संपर्क से दही जहरीला हो जाता है। काँच, स्टील, मिट्टी के बर्तनों में ही दही को रखकर प्रयोग करना चाहिए।
● दही (Curd) को रात में खाने से कफजनित रोग घेर लेते हैं। दही को अकेले नहीं खाना चाहिए तथा गर्म करके भी नहीं खाना चाहिए। इस नियम की अवहेलना करने से ज्वर, रक्तपित्त, कुष्ठ, पाण्डु, याददाश्त की कमी, बुद्धि की कमी, कामला जैसे रोग भी हो सकते हैं।
● दही (Curd) को हमेशा ताजी अवस्था में प्रयोग कीजिए। अधिक दिनों के रखे दही खट्टे, दही में पोषक तत्व कम हो जाते हैं जिससे वह हानिकारक हो जाता है।
● दही (Curd) के सेवन के तुरन्त बाद संभोग नहीं करना चाहिए क्योंकि लैक्टिड एसिड के साथ वीर्य का संयोग होने पर गर्भ नहीं ठहर सकता, अतः मां बनने की इच्छुक महिलाएं दही खाकर संभोग से हमेशा दूर ही रहें तो अच्छा है।
अन्य बीमारियों पर दही (Curd) का प्रयोग :-
दही (Curd) में उपस्थित बैक्टीरिया आंतों में जमे गन्दे विषैले कीटाणुओं को नष्ट कर दूषित जल के साथ बाहर कर देता है। नियमित दही सेवन करने वालों को अनिद्रा, कब्ज, अपच, दस्त एवं गैस की तकलीफें नहीं होतीं। भोजन के साथ दही लेने से भोजन शीघ्र पचता है एवं आंतों तथा आमाशय की गर्मी और खुश्की नष्ट होती है।
उदर रोगों में दही का सेवन भुने जीरे एवं सेंधा नमक के साथ करना चाहिए। शहद या चीनी के साथ मिलाकर दही को प्रातःकाल खाने से हृदय को पुष्ठ करता है, भूख बढ़ाता है, रक्त शोधन करता है। दही हृदय एवं मस्तिष्क को शीतलता एवं शक्ति प्रदान करने वाला, स्निग्धकारी, यकृत की शक्ति बढ़ाने वाला, बलवान बनाने वाला, वायु-कफ नाशक, बवासीर, संग्रहणी, अतिसार, प्रमेह, श्वेत कुष्ठ आदि रोगों को नाश करने वाला होता है।
दही में उपस्थित बैक्टीरिया आंतों में जमे गन्दे विषैले कीटाणुओं को नष्ट कर दूषित जल के साथ बाहर कर देता है। नियमित दही सेवन करने वालों को अनिद्रा, कब्ज, अपच, दस्त एवं गैस की तकलीफें नहीं होतीं। भोजन के साथ दही लेने से भोजन शीघ्र पचता है एवं आंतों तथा आमाशय की गर्मी और खुश्की नष्ट होती है।
उदर रोगों में दही का सेवन भुने जीरे एवं सेंधा नमक के साथ करना चाहिए। शहद या चीनी के साथ मिलाकर दही को प्रातःकाल खाने से हृदय को पुष्ठ करता है, भूख बढ़ाता है, रक्त शोधन करता है। दही हृदय एवं मस्तिष्क को शीतलता एवं शक्ति प्रदान करने वाला, स्निग्धकारी, यकृत की शक्ति बढ़ाने वाला, बलवान बनाने वाला, वायु-कफ नाशक, बवासीर, संग्रहणी, अतिसार, प्रमेह, श्वेत कुष्ठ आदि रोगों को नाश करने वाला होता है।
● नीम का तेल या दही को पुरूष शिशन पर चुपड़कर संभोग करने से गर्भ ठहरने की शंका नहीं रहती।
● दही में समान भाग जैतून के तेल को मिलाकर अविकसित स्तनों पर प्रतिदिन 20 मिनट मलने पर स्तन उन्नत, कठोर व सुडौल (आकर्षक) बन जाते हैं।
● दही और मलाई को मिलाकर रोज रात मुख पर मलने से झाई, कील, मुंहासे, थिम्म, दाग-धब्बे मिट जाते हैं। चेहरे पर इसे मलकर थोड़ी देर बाद धो लीजिए। सम्पूर्ण दिन मुख की कांति बनाये रखता है।
● बेसन दही को मिलाकर शरीर पर उबटन लगाने से शरीर की बदबू दूर हो जाती है तथा सांवला रंग भी गोरा होने लगता है।
● ग्रीष्मकाल में दही की मलाई की सिर पर मालिश करने से अनिद्रा रोग दूर हो जाता है और अच्छी नींद आती है।
● तक्र अथवा छाछ का सेवन करने वाला कभी किसी रोग से ग्रसित नहीं होता है। इसमें अपार रोग निरोधक शक्ति होती है। नित्यप्रति मट्ठा सेवन करने वाला कभी भी तन-मन से बूढा नहीं होता।
● दही में अनार के ताजे पत्ते का रस 20 ग्राम काली मिर्च 2 ग्राम, पानी 100 ग्राम मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) 60 दिनों के अन्दर निश्चित रूप से दूर हो जाता है।