लू (Loo,Lu) तब होता है जब शरीर ठंडा होने के लिए पर्याप्त पसीने का उत्पादन करने में असमर्थ होता है। जानें कि गर्मी के थकावट को कैसे पहचानें, इसका क्या कारण हो सकता है, निदान और उपचार।
लू (Loo,Lu) लग जाने के लक्षण :-
ग्रीष्म ऋतु के प्रखर सूर्य ताप से लू लगने की संभावना रहती है। तेज बाहर निकलने अथवा चलने से लू लग जाती है, जिसके कारण नाड़ी का तीव्र गति से चलना, 105 से अधिक ज्वर होना, त्वचा बहुत गर्म एवं शुष्क हो जाना, मुंह तथा आंखों का लाल हो जाना, आंखों की पुतलियों का सिकुड़ जाना. सिर दर्द चक्कर, जी मिचलाना तथा उल्टी आना, आदि लक्षण प्रकट होते हैं। रोगी जल्दी जल्दी सांस लेता है तथा सांस लेते समय घरघराहट का शब्द भी होता है। ज्वर की तीव्रता के कारण शरीर कांपने लगता है। सामायिक सहायता न मिलने पर रोगी बेहोश हो जाता है तथा उसकी मृत्यु तक हो सकती है।
1. दिनचर्या :- प्रातः उठते ही शौच जाने से पहले ताजा ठण्डा जल पेट भर धीरे-धीरे पीएं। इसके बाद थोड़ा टहल कर शौच जाएं। रोगी और कमजोर व्यक्ति उष:पान के समय नींबू पानी या नीले रंग की बोतल का सूर्य तप्त जल ले सकते हैं। सूर्योदय से पहले ही उठकर हरी-हरी घास पर या नदी व खेतों के किनारे साफ सुथरी कच्ची धरती पर नंगे पांव चलें। इसी प्रकार सायं का भ्रमण भी लाभकारी रहेगा।
प्रातः सायं नदी, तालाब, नहर आदि में तैरना बहुत ही लाभप्रद है। इसके अभाव में फव्वारा स्नान (Shower Bath) या साधारण स्नान भी हितकर है। दिन में कई बार विशेषकर प्रातः बाहर जाते समय और सायं को वापस आने पर ठंडे जल से मुख भरकर, ठंडे पानी से ही दोनों आंखों पर 5-10 बार छींटे मारें।
2. प्राणायाम :- प्रातः काल में शीतली प्राणायाम का अभ्यास कीजिए। यह गरमी को शांत करता है, प्यास बुझाता है, क्रोध को दूर करता है। प्रदाह, पित्त, अम्लपित, संग्रहणी, पेचिश, उदर वायु विकार, उच्च रक्तचाप, चर्मरोग, आदि भी दूर करता है। इससे रक्त शुद्धि भी होती है।
विधि :- किसी भी आसन में आराम से बैठकर, शरीर ढीला रखकर, दोनों नासिका रंध्रों को बंद कर दें। जीभ को ओठों से एक अंगुली बाहर निकाल कर उसके दोनों किनारों को इस तरह मोड़ें कि उसका स्वरूप एक नली की तरह बन जाए। अब इस मुड़ी हुई जीभ से पूरक करें (गहरा सांस अंदर भरें) यथाशक्ति आंतरिक कुम्भक करके (सांस अंदर रोक कर) यथा सम्भव, जालन्धर बंध लगाएं (गले को आगे झुकाते हुए ठुड्डी को कण्ठ-कूप में लगाएं)। अन्त में बंध खोलकर नासिका से ही धीरे-धीरे रेचक करें (सांस बाहर निकालें)। इसे 5-10 बार से शुरू करके धीरे धीरे ही 50-60 बार तक बढ़ाएं।
3. आहार :- प्रातः नाश्ते में नींबू की शिकंजी या ताजा मट्ठा या लस्सी (छाछ) या दूध या कोई एक प्रकार का मौसमी फल जैसे पपीता, खरबूजा, तरबूज आदि लें। इनमें से कोई एक आध खाद्य दोपहर के बाद 4-5 बजे लें।
दोपहर और सायं के भोजन में चोकर समेत आटे की रोटी या जौ की रोटी या कण समेत चावल या अंकुरित अनाज और साथ में सब्जी, सलाद जैसे ककड़ी, खीरा, पोदीना, धनिया, प्याज, टमाटर आदि लें। उबली हुई सब्जी भी लें । यथा सम्भव ककड़ी, लौकी, टमाटर, प्याज, पोदीना आदि से बने रायते ले सकते हैं। प्याज खाने से लू नहीं लगती।
भोजन के तुरंत बाद पेशाब करके वज्रासन में थोड़ा समय बैठें और फिर कुछ मिनटों के लिए दोपहर को लेटकर आराम करें।
4. तरल पेय :- दिन में आवश्यकतानुसार नींबू की शिकंजी या घड़े का ठंडा जल या फालसे आदि के शर्बत, लस्सी (छाछ) गन्ना रस, तरबूज रस, डाब (हरे नारियल का पानी), सत्तू घोल, कैरी या इमली का पन्ना आदि भी लेना लाभप्रद है।
लू से बचने के लिए धनिये के पानी में चीनी मिलाकर पीना हितकर है। तुलसी के पत्तों का रस चीनी में मिलाकर पिलाने से लू नहीं लगती और लू लगने पर लाभ होता है। चक्कर नहीं आते। इनमें बर्फ बिल्कुल न डालें, बल्कि इन्हें ठंडा करने के लिए इनके बरतनों के चारों ओर बाहर की तरफ बर्फ रख सकते हैं। या इनमें घड़े का ठंडा जल डाल सकते हैं।
5. धूप में बाहर जाना :- जहां तक सम्भव हो धूप में पैदल यात्रा न करें। यदि धूप में बाहर जाना भी पड़े तो छाता लेकर या पगड़ी बांधकर या हैट डालकर या सिर व गर्दन पर गीला कपड़ा रखकर ही जाएं। तेज धूप में धूप से तपे स्थान पर नंगे पांव व नंगे सिर जाना हानिकारक है। तेज धूप में खाली पेट भी न जाएं। धूप में बाहर जाने से पहले कोई तरल पेय या पेट भर घड़े का ठंडा जल पी लें, जेब में प्याज रख लें, जिसका उपयोग लू के निवारण में हो सकता है।
6. कपड़े :- कपड़े सदा सफेद और छिद्रयुक्त (खादी या सूत के) ही पहनने चाहिए ताकि हवा आसानी से प्रवेश कर सके। काले, लाल और टेरीलीन, नायलान कपडे हानिकारक हैं। पगड़ी या टोपी के अंदर का अस्तर भी नीले रंग का ठंडा होने के कारण गुणकारी है।
लू (Loo,Lu) लग जाने पर उपचार :-
1. कोई औषधि न देकर लू लगे व्यक्ति का खाना बंद करके उसे नीले रंग की बोतल का सूर्यतप्त जल या साधारण ठंडा जल थोड़ी-थोड़ी देर बाद पिलाते रहें। हो सके तो नीला पानी शरीर पर भी मलें।
2. रोगी के कपड़े ढीले करके उसे किसी ठंडे और हवादार स्थान पर केले के या रेंड के पत्ते बिछाकर उन पर लिटा दें।
3. तत्काल प्याज का रस निकालकर पीने को दें। प्याज रस को शरीर पर विशेषकर कनपटियों और छाती पर खूब मलें। बर्फ के टुकड़े चूसने के लिए मुंह में रखें। चने के शाक को पीस कर बदन पर मलें तथा उसके पानी को पिलाएं।
4. रोगी को ठंडे जल से देर तक नहलाना भी गुणकारी है। उसे ठंडे पानी के टब में 20 मिनट तक रखना भी और मल मल कर नहलाना भी उचित उपचार है।
5. ठंडे जल तर पंखा झूलते रहें और रोगी को बार बार स्पंज बाथ (तौलिया स्नान) भी देते रहें।
6. बर्फ जल (या बहुत ठंडा जल) की गीली पट्टी सिर व रीढ़ के ऊपर बदल-बदल कर रखें।
7. रोगी के सिर तथा मुंह पर ठंडे पानी के छींटे मारें। यदि उपलब्ध हो सके तो पानी को अधिक ठंडा करने के लिए उसमें यू – डी- कोलोन अथवा सिरका मिला लें। रोगी के सिर पर बर्फ की थैली रखना भी लाभप्रद है।
8. पेडू पर गीली मिट्टी बदल-बदल कर रखना भी बहुत लाभदायक है।
9. बहुत सख्त लू (Loo,Lu) लग जाने पर सारे शरीर को पूरी गीली चादर लपेट (Full wet sheet pack) देकर उस पर देर तक ठंडा पानी डालते रहें।
10. आम का पन्ना कच्ची अंबिया (कैरी) उबालें या गर्म राख में भून लें या कोयलों की आग के नीचे दबा दें। जब वह बैंगन की तरह काली पड़ जाए तो उसे निकाल कर ठण्डे पानी में घंटा, आधा घंटा पड़ा रहने दें। बाद में दूसरे साफ पानी में अंबिया डालकर मथें और छिलका तथा गुठली फेंक दें। इसके गूदे में काली मिर्च, भुना जीरा और पोदीने की पत्ती पीस कर मिला दें। नमक या गुड़ या चीनी जो इच्छा हो, स्वाद के लिए मिलाकर काम में लाएं। यह भोजन को है, लू के असर को दूर करता है, तथा लू से है
11. लू (Loo,Lu) के रोगी के शरीर पर गाढ़ा गाढ़ा आम का पन्ना (जिसमें मीठा या नमक आदि न पडा हो) मल देना चाहिए।
12. पकी हुई इमली के गूदे को हाथ और पैरों के तलवों पर मलने से लू का असर मिटता है।